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सूतक और पातक

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सूतक और पातक

सूतक और पातक

क्या होता है हिन्दू धर्म में सूतक और पातक ?

सूतक और पातक काल के दौरान भूलकर भी न करें ये काम, जानें क्या है नियम ?

शास्त्रों में हमारे लिए कई नियम और कानून बनाए गए हैं, जिसे लोग अपना जीवन बेहतरीन बना सकते हैं। अब तो वैज्ञानिक भी शास्त्रों में छुपी बातों पर यकीन करने लगे है और इस दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। आज हम आपको शास्त्रों के दो महत्वपूर्ण विधान सूतक और पातक के बारे में बताएंगे, जिसका पालन करना हर व्यक्ति के लिए काफी जरूरी होता है। आप सब देखते होंगे कि जब किसी घर में बच्चे का जन्म होता है तो मां और बच्चे को अलग कमरे में रखा जाता है, जहां हर किसी को नहीं जाने दिया जाता है। दरअसल, जब किसी परिवार में बच्चे का जन्म होता है तो उसे घर में सूतक लग जाता है। सूतक का यह समय पूरे दस दिन का होता है, इस दौरान परिवार के सदस्य धार्मिक गतिविधियां में भाग नहीं ले सकते हैं। साथ ही बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री के लिए रसोईघर में जाना और दूसरा कोई काम करने की भी मनाही होती है। ऐसा तब तक रहता है जब तक की घर में हवन न हो जाए।

वहीं जब कोई परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो उस घर में 'पातक' लग जाता है। गरुड़ पुराण के मुताबिक, परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर लगने वाले सूतक को ' पातक' कहते हैं। इसमें परिवार के सदस्यों को उन सभी नियमों का पालन करना होता है, जो सूतक के समय किया जाता है। पातक में विद्वान ब्राह्मण को बुलाकर गरुड़ पुराण का वाचन करवाया जाता है।

सूतक और पातक

ध्यान दें कि सूतक और पातक का सिर्फ धार्मिक कर्मकांड नहीं है बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। जब कोई परिवार में किसी बच्चे का जन्म या किसी सदस्य की मृत्यु होती है तो वहां संक्रमण फैलने का खतरा अधिक रहता है। ऐसे में अस्पताल या शमशान या घर में नए सदस्य के आगमन, किसी सदस्य की अंतिम विदाई के बाद घर में संक्रमण का खतरा गहराने लगता है। इसलिए कई तरह की सावधानी बरती जाती है।

सूतक और पातक दोनों प्रक्रिया बीमारियों से बचने के उपाय है, जिसमें घर और शरीर की शुद्धि की जाती है। 'सूतक' और 'पातक' की अवधि समाप्त होने के बाद घर में हवन कर वातावरण को शुद्ध किया जाता है। पूजा-पाठ और हवन से हमारे घर का वातावरण ठीक हो जाता है साथ ही शुद्ध हो जाता है। हवन से हमारे घर में मौजूद सभी बैक्टेरिया भी मर जाते हैं. इसके साथ ही सूतक की समाप्ति हो जाती है। वहीं अगर सूतक के पहले घर में खाना तैयार कर लिया गया है तो उसमें तुलसी के पत्ते डालकर उसे प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।

सूतक पातक की अवधि क्या है?

हर वर्ग के लिए सूतक और पातक कल की अवधि है अलग

शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण को दस दिन का, क्षत्रिय को बारह दिन का, वैश्य को पंद्रह दिन का और शूद्र को एक महीने का सूतक लगता है लेकिन विशेष परिस्थितियों में चारों वर्णों की शुद्धि दस दिनों में ही हो जाती है। इसे शारीरिक शुद्धि कहते हैं इसके पश्चात किसी भी तरह का छुआछूत दोष नहीं रहता और त्रयोदश संस्कार के बाद पूर्ण शुद्धि हो जाती है। अतः परिवार में देवताओं की पूजा-आराधना इसके पश्चात ही की जाती है जिसमें स्थित सर्वप्रथम भगवान विष्णु की पूजा अथवा सत्य नारायण कथा का श्रवण अनिवार्य रूप से किया जाता है।

सूतक-पातक को क्यों माना जाता है ?

जन्म के अवसर पर जो नाल काटा जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया में अन्य प्रकार की जो हिंसा होती है, उसमें लगने वाले दोष या पाप के प्रायश्चित स्वरूप सूतक माना जाता हैं। पातक का सम्बन्ध मरण के निर्मित से हुई अशुद्धि से है। मरण के अवसर पर दाह-संस्कार में इत्यादि में जो हिंसा होती है, उसमें लगने वाले दोष या पाप के प्रायश्चित स्वरूप पातक माना जाता है।

सूतक के नियम (सूतक काल में क्या करें ?)

  • सूतक और पातक की अवधि में दूसरे लोगों को छूने से बचें
  • कोई भी धार्मिक और मांगलिक कार्य न करें
  • किसी सामाजिक कामों में हिस्सा न लें
  • दूसरों के घर न जाएं और न ही बेवजह भ्रमण करें
  • सूतक काल में भूलकर भी विवाह नहीं करना चाहिए
  • भगवान की पूजा नहीं करनी चाहिए
  • सूतक काल में किसी भी तरह के मांगलिक कार्य और परिवार के सदस्यों के लिए श्रृंगार आदि करना वर्जित माना गया है।

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